एक थी नचनिया--भाग(३८)
कस्तूरी को देखकर जुझार सिंह को एक ही पल में सब समझ आ गया कि हो ना हो,मोरमुकुट और माधुरी मुझसे बदला लेना चाह रहे हैं,लेकिन ये समझ नहीं आया कि मोरमुकुट सिंह इस कस्तूरी का क्या लगता है,वो इसी उधेडबुन में लगा हुआ था और तब तक कस्तूरी भी वहाँ से जा चुकी थी,तभी ललिता नर्स ने देखा कि वो बूढ़ा अभी तक वहाँ खड़ा हुआ है और उसने उसके पास जाकर पूछा.... "आप! अभी तक गए नहीं,लगता है आपका इरादा बदल गया" "नहीं! मैं बस जा ही रहा था कि तभी मैंने उस लड़की को देखा ,क्या वो भी यहाँ अपना इलाज करवा रही है" "हाँ! उसका यहाँ बहुत वक्त से इलाज चल रहा है,लेकिन आप उसके बारें में क्यों पूछ रहे हैं",ललिता नर्स ने पूछा... "बस ऐसे ही,क्योंकि मेरी बेटी की हालत भी कुछ ऐसी ही है"जुझार सिंह बोला.... "वो पागल नहीं थी,एक हादसे की वजह से उसकी हालत ऐसी हो गई है",ललिता नर्स बोली.... "कैसा हादसा?",जुझार सिंह ने पूछा... "माँफ कीजिएगा,मैं ये सब आपको नहीं बता सकती,मुझे किसी की निजी जिन्दगी के बारें में बताने की इजाज़त नहीं है",ललिता नर्स बोली.... "जी! कोई बात नहीं,अब मैं जाता हूँ,अपनी बेटी को लेकर मैं यहाँ जल्द ही आऊँगा",जुझार सिंह बोला... "जी! अच्छा!",ललिता नर्स बोली.... और फिर जुझार सिंह वहाँ से चला गया,लेकिन अब उसे सच्चाई का कुछ कुछ पता चल गया था और वो अटकलें लगाने लगा कि इस गुत्थी का छोर कहाँ से कहाँ तक है,आखिर ये रुपतारा रायजादा कौन है और उसे वो कहाँ मिलेगी,लेकिन इससे पहले तो मुझे इस मोरमुकुट यानि कि विचित्रवीर की अकल ठिकाने लगाने पड़ेगी,तभी सारी सच्चाई सामने आऐगी... इधर जब मोरमुकुट सिंह अस्पताल पहुँचा तो ललिता नर्स ने उससे कहा कि एक बूढ़ा आदमी कम्बल ओढ़े हुए उन्हें पूछ रहा था,ये सुनकर मोरमुकुट सिंह हैरान हो उठा उसे अब ये लग चुका था कि हो ना हो शायद जुझार सिंह उसके बारें में पूछता हुआ यहाँ आ पहुँचा होगा और फिर मोरमुकुट ने ललिता से पूरी बात पूछी तो ललिता नर्स ने बताया कि जब उसने कस्तूरी को देखा तो वो जाते हुए रुक गया और कस्तूरी के बारें पूछने लगा कि उसकी ऐसी हालत कैंसे हुई लेकिन मैंने उसे कस्तूरी के बारें में कुछ नहीं बताया..... ये सुनकर मोरमुकुट को पूरा यकीन हो गया था कि हो ना हो वो जुझार सिंह ही था और अब मोरमुकुट सिंह भीतर से डर चुका था क्योंकि उसे पता था कि अब जुझार सिंह पीछे हटने वाला नहीं है क्योंकि उसने कस्तूरी की शकल देख ली थी और वो उसे पहचान चुका था,अब वो कोई ऐसा कदम उठाएगा जिसके बारें कोई भी अन्दाजा नहीं लगाया जा सकता.... इसलिए अब मोरमुकुट सिंह ने सोचा पहले शुभांकर को उसके पिता की सारी सच्चाई बता दी जाए,जिससे उसकी नजरों में माधुरी निर्दोष साबित हो जाए और उसके बाद मोरमुकुट सिंह और माधुरी अस्पताल पहुँचे,माधुरी को मोरमुकुट सिंह के साथ देखकर शुभांकर आगबबूला हो उठा और माधुरी से बोला.... "माधुरी देवी! मुझ पर इतना सितम ढ़ाने के बाद भी शायद चैन नहीं मिला आपको,अब क्या मेरी जान लेने का इरादा है" "शुभांकर! तुम माधुरी को गलत समझ रहे हो",मोरमुकुट सिंह बोला... "रहने दीजिए! रायजादा साहब! किसे बेवकूफ़ बनाते हैं, ये जैसी दिखती है वैसी है नहीं,ये पैसों के लिए कितना भी नीचे गिर सकती है,इसके अपने कोई उसूल नहीं हैं,कोई आदर्श नहीं है",शुभांकर बोला... "नहीं! ऐसा कुछ भी नहीं है,तुमने जो रुप इसका देखा वो इसने किसी मकसद को पूरा करने के लिए धरा था",मोरमुकुट सिंह बोला.... "अब रहने भी दीजिए विचित्रवीर रायजादा! आप इनकी तरफदारी तो करेगें ही,इनके सच्चे आशिक जो ठहरे,मेरे पिता जी मुझे सबकुछ बता चुके हैं आपके बारें में कि आप रुपतारा रायजादा के पोते हैं,जिनके कारण सिनेमाहॉल बनाया जा रहा है",शुभांकर बोला... "जी! नही! मैं कोई विचित्रवीर रायजादा नहीं हूँ,मैं तो कोई और ही हूँ",मोरमुकुट सिंह बोला... "और ही कोई हैं,क्या मतलब है आपके कहने का"शुभांकर ने पूछा... "जी! वही सच्चाई तो हम दोनों आपको बताने यहाँ आए थे,लेकिन आप शायद इतने खफ़ा हैं कि कुछ सुनने के लिए तैयार ही नहीं हैं",मोरमुकुट सिंह बोला.... "जी! कहें कि आप क्या कहना चाहते हैं",शुभांकर बोला... "जी! मैं डाक्टर मोरमुकुट सिंह हूँ और माधुरी मेरी छोटी बहन जैसी है,हम दोनों किसी खास मकसद को पूरा करने के लिए ये सब कर रहे थे",मोरमुकुट सिंह बोला.... "खास मकसद! मैं कुछ समझा नहीं,पूरी बात बताइए",शुभांकर ने पूछा... तब मोरमुकुट सिंह ने शुभांकर को पूरी बात बताई कि उसके पिता जुझार सिंह ने क्या क्या किया था,उनके ही कारण आज कस्तूरी को अस्पताल में रहना पड़ रहा है,इसलिए सालों पहले जुझार सिंह कलकत्ता भाग गया था,अब शुभांकर को पूरी बात समझ में आ गई थी और उसने मोरमुकुट सिंह से माँफी माँगते हुए कहा.... "मुझे माँफ कर दीजिए डाक्टर साहब! मैने आपको गलत समझा और गुस्से में आपको बहुत कुछ कह गया", "कोई बात नहीं शुभांकर! अगर मैं तुम्हारी जगह होता तो मैं भी यही करता",मोरमुकुट सिंह बोला.... और इसके बाद शुभांकर ने माधुरी से भी माँफी माँगते हुए कहा.... "माधुरी! अगर तुम ये सब मुझे पहले बता देती तो मैं कभी भी तुम्हारे साथ ऐसा सुलूक ना करता" "मैं मजबूर थी,मैं तुम्हें सबकुछ नहीं बता सकती थी",माधुरी बोली... "तुम्हें ये डर था कि कहीं मैं ये सब जानने के बाद अपने पिता का साथ ना देने लग जाऊँ",शुभांकर बोला... "सच कहूँ तो यही डर था मुझे",माधुरी बोली... "तुमने मुझे गलत समझा माधुरी! मैं हमेशा सच का साथ ही दूँगा,भले ही वो मेरे पिता हैं लेकिन उन्हें उनके किए की सजा मिलनी ही चाहिए",शुभांकर बोला.... "तो इसका मतलब है कि तुम हमारे साथ हो",मोरमुकुट सिंह ने पूछा.... "हाँ! मैं आप सभी के साथ हूँ",शुभांकर बोला... "लेकिन तुम इस तरह से अपने पिता को धोखा दे रहे हो" माधुरी बोली.... "नहीं! मैं केवल सच का साथ दे रहा हूँ",शुभांकर बोला... "उन्हें जब ये बता चलेगा कि तुम उन्हें धोखा दे रहे हो,तो उनके दिल पर क्या गुजरेगी",माधुरी बोली... "उन्होंने भी तो इतना बड़ा कुकृत्य करने से पहले कुछ नहीं सोचा,अगर उन्होंने ये सब सोचा होता तो मुझे उनके साथ धोखा करने की जरूरत ही ना पड़ती,उनकी आँखों पर बँधी अभिमान की पट्टी खुलनी ही चाहिए और इसके लिए मुझे ही आगें होना होगा,नहीं तो उन्हें कभी भी अपनी गलती का एहसास नहीं होगा",शुभांकर बोला... "बहुत बहुत शुक्रिया शुभांकर! मुझे तुमसे ऐसी ही उम्मीद थी",मोरमुकुट सिंह बोला.... "इसमें शुक्रिया की कोई बात नहीं है डाक्टर बाबू! वे मेरे पिता हैं और उन्हें सही रास्ता दिखाना मेरा फर्ज है,मैं भी चाहता हूँ कि वे अपना अपराध स्वीकार करके बाक़ी का जीवन स्वच्छ और निर्मल मन के साथ गुजारें",शुभांकर बोला..... और इस तरह से उन सभी के बीच बातें चलती रहीं और कुछ समय बाद माधुरी और मोरमुकुट शुभांकर से मिलकर वापस चले आए... और इधर जुझार सिंह का शातिर दिमाग़ कहाँ शान्त बैठने वाला था,इसलिए उसने अपनी तिकड़म लगानी शुरू कर दी और इस तरह से उसने चमनलाल खुराना के बारें में भी बता करवा लिया और तब उसे पता चला कि ये तो वही शख्स है जो रुपतारा रायजादा का मैनेजर खूबचन्द निगम बनकर उसके पास आया था, अब जुझार सिंह की गुत्थी ने थोड़ा थोड़ा सुलझना शुरू कर दिया था,गुत्थी को पूरी तरह से सुलझाने के लिए उसने किराए पर बहुत से गुण्डे रखे, वे सब वही लोग थे जो कभी उसके लठैत हुआ करते थे,गाँव की खिलाई पिलाई ने उन लठैतों को अभी तक बूढ़ा नहीं होने दिया था,उनकी जवानी अभी भी वैसी ही बरकरार थी,उनमें से कुछ नये लड़के भी थे जो कि उन्हीं लठैतों की जान पहचान वाले थे..... उसने शहर से बाहर बहुत दूर एक सुनसान सी और खण्डहर मिल चुनकर पहला काम ये करवाया कि चमनलाल खुराना साहब को अगवा करवाकर उस मिल में बँधवा दिया और अब वो दूसरा काम करने की फिराक़ में था,जिसे करने के लिए बहुत ही सावधानी बरतने की जरूरत थी,जिसके लिए उसने दो दिनों तक योजना बनाई और आखिर एक रात वो उस काम को करवाने में सफल भी हो गया.... उसकी योजना के अनुसार उसने इस काम के लिए अपने एक लठैत को चुना,वो लठैत अपनी पागल बेटी के साथ अस्पताल पहुँचा और उसे वहाँ भरती करवा दिया,दो दिनों तक वो लड़की पागल बनकर अस्पताल का मुआयना करती रही और ये देखती रही कि अस्पताल से वो कस्तूरी को कैसें भगाकर ले जा सकती है,इसलिए उसने कस्तूरी से दोस्ती कर ली,बेचारी कस्तूरी कहाँ जानती थी कि वो दूसरी लड़की कैंसी है और वो उसकी बातों में आ गई,उस पागल ने अपना नाम पानकुँवर बताया और कस्तूरी के साथ दो ही दिनों में खूब घुल मिल गई,
क्रमशः.... सरोज वर्मा...
Shnaya
07-Feb-2024 07:51 PM
Nice one
Reply
Milind salve
05-Feb-2024 02:37 PM
Nice
Reply
Gunjan Kamal
02-Feb-2024 03:40 PM
👏👌
Reply